Wrote these few lines after a deep meditation and an experience of the Brahm,
युध्स्थल पर कोई मंदिर नहीं।
दृढ़ मन में ही भगवान बसा लो।
दुनियादारी का मेला नश्वर है।
मन मस्तिष्क के अन्त से पहले, अनन्त ईश्वर को अपना लो।
लिखूँ मैं क्या ब्रह्म का।
कुछ भी लिखा ना जाए।
वो हैं, बस हैं, सब है; यह जान लो।
उनसे भगा ना जाए।
मात-पिता, शिक्षक, औरत, संतान और संसार ने दीं मोल की चीज़।
सतगुरु की दीक्षा अनमोल है, इसमें ब्रह्म का बीज।